"महरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त, मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ!! ज़ौफ़ में ताना-ए-अग़यार का शिकवा क्या है, बात कुछ सर तो नहीं है के उठा भी न सकूँ!!"
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